लेख

“अंधविश्वास”


अतुल

अंधविश्वास का अर्थ होता है, किसी भी मान्यताओं को बिना विचारे मानना। हमें पहले यह समझना चाहिए कि अंधविश्वास का जन्म कहां से हुआ वह आया कहां से? इसका जन्म भारत में बहुत वर्ष पूर्व ही हो गया था। जब इंसानों के मन में डर आया, अपने से ताक़तवर प्राणियों का। फिर धीरे-धीरे अंधविश्वास ने एक बड़ा रूप लिया, जब भारत में वर्गीय समाज आया। उसमें से भी जो उच्च वर्ग के लोग जिसे ब्राह्मण वर्ग ने उसको बनाया और अंधविश्वास को फैलाया। इन्हीं मान्यताओं ने आगे चल के बड़े अस्तित्व का रूप ले लिया। जिसमें धर्म ने तो कोई कसर ही नहीं छोड़ी है। अंधविश्वास के कारण समाज में ढोंगी बाबाओं का धंधा और ऐसी बहुत सी चीजें बहुत बढ़ गई हैं। इसको हम कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं-

1. पहले तो हम अपने आसपास के उदाहरण ले सकते हैं जैसे- कि करवा चौथ का व्रत। यह व्रत महिलाएं इसलिए करती हैं ताकि उनके पति की लंबी उम्र रहे और उनकी सुरक्षा के लिए। पर सवाल यह उठता है जो यह व्रत नहीं करते उनके पति सुरक्षित नहीं होते क्या? अंधविश्वास और समाज के अन्य जो भी समस्या को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सुलझाया एवं उसका समाधान किया जा सकता है। प्रथम उदाहरण को लोगों के सामने सिद्ध करने का तरीका है कि इसे वैज्ञानिक तरीके से सुलझाया जाए। जिसमें से एक तरीका यह हो सकता है कि तीस ऐसी महिलाएं जो करवा चौथ का व्रत करती हैं और ऐसी 30 महिलाएं जो करवा चौथ का व्रत नहीं करती हैं और उन दोनों महिलाओं के ग्रुपों का विश्लेषण करके हमें देखना चाहिए कि दोनों के ग्रुपों के पतियों में कितना फर्क पड़ा। जाहिर है कि दोनों ग्रुपों के पतियां समान ही रहे हैं।

2. दूसरा उदाहरण हम गौमूत्र का मुद्दा ले सकते हैं। सरकार ने गौमूत्र और उसके पदार्थों की शोध के लिए कुछ वैज्ञानिकों की टीम को बिठाया और उनकी शोध के मुताबिक गोमूत्र कई बीमारियों का इलाज कर सकता है। इसी मुद्दे को लेकर एक पत्रकार ने आयुर्वेदिक डॉक्टर से इस पर बातचीत की। उस पत्रकार ने कहा-इसका कोई साक्ष्य दिखाओ जो साबित कर सके कि गौमूत्र कई बीमारियों- इनमें से एक बीमारी जैसे -कैंसर का इलाज कर सकता है? उन्होंने उस पत्रकार को गोमूत्र के शोध की एक मोटी सी किताब पकड़ा दी। उस पत्रकार ने पूछा कि यह शोध के कागजात पर इन्हीं वैज्ञानिकों ने काम किया है कि नहीं, क्योंकि उस पत्रकार ने जब उस शोध के कागज़ात को पढ़ा था तो उसे वैज्ञानिक शोध दिखी ही नहीं। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि गोमूत्र पर शोध गुजरात में स्थित एक स्थान पर किसी गांव शोध की संस्था ने की है, उन्होंने यह शोध के कागज़ात यहां पर भेजा है और उस पर हस्ताक्षर कर दिए गए हैं। मतलब कि ये कितना बकवास करते रहते हैं कि गोमूत्र यह कर सकता है, वो कर सकता है। हम यह नहीं कह रहे कि यह गलत है ,लेकिन इसका कोई पुख्ता प्रमाण भी नहीं ला रहे हैं सरकार की शोधकर्ता टीम तो फिर गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर को कैंसर के इलाज के लिए अस्पताल जाने की क्या जरूरत थी। उन्हें सुबह शाम को गोमूत्र पिलातेे , उनका कैंसर ठीक हो जाता। इस बात का जवाब नहीं था इनके पास। हमें हर ऐसे अंधविश्वास के मुद्दों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचना, समझना और सुलझाना चाहिए। पर यह भी कैसे होगा हमारी सरकार शिक्षा पर इतने हमले कर रही है। भारत में ज्यादातर विज्ञान वैज्ञानिक तरीके से पढ़ाया ही नहीं जाता ,तो आज की पीढ़ियों में वैज्ञानिक सोच कैसे आएगी?

निष्कर्ष- इसका (अंधविश्वास) का कारण अतार्किक आस्था है और इसका समाधान वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं सोच है।


Comments

  1. विचारणीय ...इनकी वैज्ञानिकता ढंग से सत्यता -असत्यता प्रमाणित की जाये तो शायद अआने वाली पीढ़ि लाभांवित हो और अंधविश्वास से बच जाये ।

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