समीक्षा
“पहला अध्यापक”
(लेखकः चिंगिज आइत्मातोव, अनुवादक : भीष्म साहनी)
समीक्षक: उपासना
‘पहला अध्यापक’ नामक उपन्यास ‘चिंगेज आइत्मतोव’ के द्वारा रचित है । इस उपन्यास में जिन घटनाओं का जिक्र किया गया है व इस शताब्दी के तीसरे दशक में मध्य एशिया में सोवियत सत्ता के स्थापना काल में घटी थी। परंतु इस उपन्यास में वर्णित कई समस्याओं को हम आज के समाज से जोड़कर देख सकते हैं। पूरा उपन्यास अध्यापक ‘ दुईषेन ‘ व उसकी शिष्या ‘अल्तीनाई सुलेमानोवना’ के इर्द-गिर्द घूमता है। इसमें अध्यापक दुईषेन जो एक अशिक्षित युवक है जिसे ढंग से हिंदी तक पढ़नी नहीं आती, कुरकेव गाँव के ऐसे बच्चों को पढ़ाने का निश्चय करता है जिनकी सात पीढ़ियों ने भी कभी स्कूल का नाम तक नहीं सुना, परंतु वह लेनिन के विचारों से अत्यधिक प्रभावित है । उसके बारे में सभी को बताना चाहता है। परंतु गांव का कोई भी घर अपने बच्चों को दुईषेन के यहां पढ़ने को नहीं भेजता। उसकी एक विद्यार्थी अल्तीनाई जिसे पढ़ने में काफी रुचि होती है परंतु उसके चाचा-चाची उसके साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते वह उसे स्कूल भेजने को राजी नहीं होते परंतु दुईषेन काफी साहस करके उसे पढ़ाने के लिए लेकर आता है। वह चाहता है कि अल्तीनाई शहर जाकर पढे, परंतु उसकी चाची उसकी शादी तय कर देती हैं उसे बहुत मारा करती हैं। एक दिन तो उसकी चाची स्कूल तक आ गई और एक लालमुहे को अपने साथ लेकर आई उस लालमुहे से हमारी बहुत लड$ाई होती है। दुईषेन बुरी तरह जख़्मी हो जाता है और अल्तीनाई को भागने के लिए कहता है परंतु वह भाग नहीं पाती व कहीं दूर ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म को अंजाम दिया जाता है।
कुछ दिनों में दुईषेन दो अन्य मिलिषियामेन के साथ आता है वे लालमोहे को अपने साथ ले जाते हैं। बेचारी अल्तीनाई अधमरी सी बैठी है, चिल्ला तक नहीं सकती परंतु उसे यह जानकर बहुत खुशी होती है कि उसके अध्यापक अभी भी जीवित है परंतु उसे यह ख्याल सता रहा था कि उसकी इज़्ज़त लूटी जा चुकी है, उसका पतन हो चुका है परंतु दुईषेन अल्तीनाई का हाथ पकड़ कर उसे सांत्वना देता है और उसे सारी बात भुलाकर शहर भेजने का निश्चय करता है क्योंकि वह जानता है कि वह खुद इतना पढ़ा-लिखा नहीं है और उसकी शिक्षा में बाधा नहीं बनना चाहता। पुरानी बातों को अल्तीनाई के दिमाग से मिटा देना चाहता है। जब उसके मास्टर जी उसे स्टेशन पर छोड़ने आते हैं तो दृढ़$ बने रहने का प्रयास करते हैं। ताकि उसे इस बात का पता ना चले कि उसका दिल टूक टूक हो रहा है विदा लेते वक्त दुईषेन अल्तीनाई को बाहों में भरकर उसे माथे पर चूमता है। उस वक्त ऐसा लग रहा था कि उनकी भावनाएं प्रेम में बदल चुकी है उस दिन के बाद वे दोनों कभी नहीं मिले। पत्र लिख कर अपने प्यार का इज़हार भी किया परंतु उसका कोई जवाब नही आया शायद वह यह नहीं चाहता था कि वह उसकी पढ़ाई में कोई रुकावट बने।
अल्तीनाई एक बार अपने गांव भी गई परंतु उसे पता चला कि फौज में जा चुका है, और वह उसके बाद कभी वहां नहीं गई अल्तीनाई अपना घर बसा लेती है व उसके दो बच्चे भी हैं ,परंतु आजीवन उससे प्रेम करती है दोनो का प्यार अमर है इस उपन्यास में हम समाज मे विद्यमान अवधारणा को अच्छी प्रकार समझ सकते हैं जो अभी भी विद्यमान है इंसानियत कई खोती होती हुई नजर आती है। जैसा कि अल्तीनाई की चाची ने उसके साथ किया इंसानियत से भी परे था ,जुर्म की तादाद बढ़ती जा रही है। हमारे समाज मे लड़कियों के साथ दुष्कर्म को बड़े पैमाने पर अंजाम दिया जाता है। यह उपन्यास हमें इसलिए पढ़ना चाहिए ताकि हम समाज में विद्यमान अनेक कुरीतियों को गहराई से जान सके व इसका डटकर सामना कर सके। इसके अलावा इस तथ्य से परिचित हो सके शिक्षा हमारे जीवन का कितना महत्वपूर्ण भाग है। जिसके माध्यम से हम अपना जीवन सवार सकते हैं। सही व गलत की समझ प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा इस उपन्यास में सच्चे प्रेम की झलक भी मिलती है। यदि हम इस अध्याय के मुख्य किरदार दुईषेन की बात करें तो एक शिक्षक के नाते अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी प्रकार जानता है परंतु एक प्रेमी के रूप में भी उसका रूप सराहनीय है। कभी अल्तीनाई के पढ़ाई में बाधा नहीं बनना चाहता इसीलिए कभी भी उसने अपने प्रेम का इज़हार नहीं किया । आवश्यकता पड़ने पर प्रत्येक को यह किरदार निभाना चाहिए व इस उपन्यास से सीख लेनी चाहिए। दोनों का प्रेम अमर है।
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