कविता
“ जो बात - बात में बात करे लाठी - डंडे की” निर्मला पुतुल कोई थारी लोटा तो नहीं कि बाद में जब चाहूँगी बदल लूँगी अच्छा - ख़राब होने पर जो बात - बात में बात करे लाठी - डंडे की निकाले तीर - धनुष कुल्हाडी जब चाहे चला जाए बंगाल , आसाम , कश्मीर ऐसा वर नहीं चाहिए मुझे और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाया फसलें नहीं उगाई जिन हाथों ने जिन हाथों ने नहीं दिया कभी किसी का साथ किसी का बोझ नही उठाया और तो और जो हाथ लिखना नहीं जानता हो " ह " से हाथ उसके हाथ में मत देना कभी मेरा हाथ
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